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इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: हाथरस लिपिक की बर्खास्तगी रद्द, तुरंत नौकरी में बहाली का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: हाथरस लिपिक की बर्खास्तगी रद्द, तुरंत नौकरी में बहाली का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: हाथरस लिपिक की बर्खास्तगी रद्द, तुरंत नौकरी में बहाली का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय में काम करने वाले एक वरिष्ठ लिपिक की बर्खास्तगी को गलत ठहराते हुए उसे रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि किसी कर्मचारी को अनुकंपा के आधार पर मिली नौकरी को बिना ठोस कानूनी कारण और उचित प्रक्रिया के, खासकर 14 साल बाद, मनमाने तरीके से खत्म नहीं किया जा सकता। यह फैसला उन तमाम लोगों के लिए राहत की खबर है, जो बिना उचित कारण के नौकरी से हटाए जाते हैं।

यह मामला हाथरस के बेसिक शिक्षा विभाग में वरिष्ठ लिपिक के तौर पर कार्यरत शिवकुमार से जुड़ा है। शिवकुमार को 31 मई 2023 को उनकी नौकरी से हटा दिया गया था। उनके पिता हाथरस के एक जूनियर हाईस्कूल में सहायक शिक्षक थे, जिनकी मृत्यु के बाद शिवकुमार को अनुकंपा के आधार पर लिपिक की नौकरी दी गई थी। उनकी मां उस समय अलीगढ़ में सहायक शिक्षिका थीं। जब शिवकुमार को नौकरी मिली, तब उन्होंने अपनी मां की सरकारी नौकरी की जानकारी छिपाने की कोई कोशिश नहीं की थी। उस समय आवेदन पत्र में ऐसा कोई कॉलम ही नहीं था, जिसमें माता-पिता की सरकारी नौकरी का जिक्र करना जरूरी हो। विभाग ने उनके सभी दस्तावेजों की बारीकी से जांच की थी और फिर नियुक्ति दी थी।

लेकिन, 14 साल बाद एक शिकायत के आधार पर यह दावा किया गया कि शिवकुमार ने अपनी मां की नौकरी की जानकारी छिपाई थी। इसके चलते उनकी बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया गया। कोर्ट ने इस मामले में विभाग के रवैये को गलत ठहराया और कहा कि अगर उस समय कोई जानकारी सामने नहीं आई, तो इसके लिए शिवकुमार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। विभाग को चाहिए था कि वह नियुक्ति से पहले सभी तथ्यों की अच्छी तरह जांच करता।

न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने शिवकुमार की याचिका पर सुनवाई की और उनकी बर्खास्तगी के आदेश को तुरंत रद्द कर दिया। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारी को सख्त हिदायत दी कि शिवकुमार को उनकी नौकरी में तुरंत बहाल किया जाए। साथ ही, उन्हें पिछले सारे वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएं भी दी जाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर नियुक्ति के समय किसी तरह की धोखाधड़ी या गलत जानकारी देने का सबूत नहीं है, तो इतने साल बाद किसी कर्मचारी को नौकरी से हटाना पूरी तरह गलत है।

इस फैसले ने एक बार फिर यह साबित किया है कि नौकरी से निकालने के लिए मजबूत कानूनी आधार और पारदर्शी प्रक्रिया का होना जरूरी है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अनुकंपा नियुक्ति का मकसद मृतक कर्मचारी के परिवार को आर्थिक सहारा देना है। ऐसे में, बिना ठोस वजह के किसी की नौकरी छीनना नाइंसाफी है। यह फैसला नौकरशाही में जवाबदेही को बढ़ावा देता है और उन कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो बिना उचित प्रक्रिया के नौकरी से हटाए जाते हैं। शिवकुमार की बहाली से उनके परिवार को बड़ी राहत मिलेगी और यह अन्याय के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी है।

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